
प्रेगनेंसी में हाइपरथाइरॉयडिज़्म और हाइपोथाइरॉयडिज़्म आम समस्या है. लेकिन इनका इलाज बहुत जरूरी है क्योंकि थायराइड का स्तर असंतुलित होने पर मां और शिशु दोनों का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है. यही वजह है कि जब भी कोई महिला गर्भवती होती है, या प्रेगनेंसी की प्लानिंग करती है तो डॉक्टर सबसे पहले उसे थाइरॉयड का टेस्ट कराने की सलाह देते हैं.
दरअसल थाइरॉयड हमारी गर्दन के सामने वाले हिस्से में तितली के आकार की एक ग्रंथि होती है जो टी3 और टी4 नामक हार्मोन रिलीज करती है. ये दोनों हार्मोंस शरीर में मेटाबॉलिज़्म, पाचन प्रकिया, वजन, तापमान, हृदय गति, मांसपेशियों व कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करते हैं. इन हार्मोंस के असंतुलित होने पर वजन कम या ज्यादा होने लगता है. इस स्थिति को ही थाइरॉयड बीमारी के नाम से जाना जाता है. जब थाइरॉयड ग्रंथि जरूरत से कम हार्मोंस का निर्माण करती है तो इसे हाइपोथाइरॉयडिज़्म कहा जाता है और जब अधिक हार्मोंस का निर्माण करने लगती है तो इसे हाइपरथाइरॉयडिज़्म कहा जाता है.
हाइपोथाइरॉयडिज़्म के लक्षण
चेहरे में सूजन, त्वचा में कसाव महसूस होना, जरूरत से ज्यादा थकान, नब्ज का धीरे होना, अत्यधिक कब्ज, ठंड बर्दाश्त न होना, वजन बढ़ना, शरीर में ऐंठन महसूस होना, पेट में खराबी, काम में ध्यान न लगा पाना या फिर याददाश्त का प्रभावित होना, टीएसएच का स्तर ज्यादा होना और टी4 का कम होना.
हाइपरथाइरॉयडिज़्म के लक्षण
थकान, उल्टी आना, ह्रदय गति का अधिक होना, भूख कम या ज्यादा होना, चक्कर आना, पसीना अधिक आना, नजर का कमजोर होना, अगर डायबिटीज है तो ब्लड शुगर बढ़ना, पेट खराब होना, वजन कम होना.
इलाज न करवाने पर हो सकती हैं समस्याएं
सही समय पर इलाज न करवाने पर महिला को उच्च रक्तचाप, एनीमिया, गर्भपात, जन्म के समय शिशु का वजन कम
पूरी तरह से शिशु का मानसिक विकास न होना, गर्भपात, समय से पूर्व डिलीवरी, शिशु का वजन कम जैसी परेशानियां हो सकती हैं.
क्या करें
1. विशेषज्ञ द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करें.
2. दवा समय से खाएं.
3. डॉक्टर की सलाह पर प्रतिदिन व्यायाम करें
4. किसी योग प्रशिक्षक की देखरेख में योग व मेडिटेशन भी कर सकती हैं.
5. रोजाना कुछ देर जरूर टहलें.
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