
भारत में कई सारे प्राचीन मंदिर हैं जिनसे लोगों का विश्वास जुड़ा है, यही नहीं भारत के अलावा विदेशों में भी कई सारे मंदिर ऐसे हैं, जिन्हें देखकर श्रद्धालुओं की आंखेंं खुली की खुली रह जाती है।
वही भारत एक राष्ट्र होने के बावजूद यहाँ कई तरह की परम्पराएं हैं। हमारे देश में कई ऐसे भी मंदिर हैं जिनकी मान्यताएं काफी अलग-अलग हैं। ऐसा ही एक अनोखा मंदिर देश के दिल में स्थित है। जहां प्रसाद के रूप में लड्डू-पेड़ों की बजाए प्रसाद में सोने-चांदी के सिक्के मिलते हैं।
यह मध्य प्रदेश के रतलाम के माणक में स्थित है। इस मंदिर का नाम महालक्ष्मी मंदिर है। इस मंदिर की खास बात ये भी है कि यहां के कपाट केवल धनतेरस के ही दिन खुलते हैं।
इस मंदिर में श्रद्धालु केवल महालक्ष्मी ही नहीं बल्कि कुबेर महाराज की पूजा करने के लिए भी आते हैं। धनतेरस के दिन ब्रह्ममुहूर्त में खुलने वाले इस मंदिर के कपाट भाई-दूज के दिन बंद कर दिए जाते हैं।
धनतेरस के दिन विधि-विधान से मां महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। रतलाम ही नहीं आसपास के लोगों की भी मान्यता है कि महालक्ष्मी मंदिर में श्रृंगार के लिए लाए गए आभूषण और धन से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और वर्ष भर में धन दोगुना हो जाता है।
महालक्ष्मी मंदिर की सजावट धनतेरस के आठ दिन पहले से ही प्रारंभ कर दी जाती है। इस दौरान लोग यहां सोने एवं चांदी के सिक्के भी भारी मात्रा में लेकर पहुंचते है।
मां महालक्ष्मी मंदिर में श्रद्धालु सोने.चांदी के आभूषण तथा नोटों की गड्डियां लेकर पहुंचते है। इनकी एंट्री मंदिर ट्रस्ट द्वारा करके टोकन दिया जाता है। इसके बाद सभी आभूषण और नोटों की गड्डियां मंदिर में विराजित महालक्ष्मी देवी को समर्पित कर दिए जाते हैं।
फिर सभी टोकन के जरिए ही श्रद्धालुओं को वापस कर दिए जाते हैं। ज्ञात हो कि धनतेरस के पहले मंदिर को पूरी तरह सोने और चांदी के आभूषणों और नोटों की गड्डियों से सजाया जाता है।
मां लक्ष्मी के इस मंदिर में सोने-चांदी और नोटों की गड्डियां चढ़ाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। यहां आने वाले श्रद्धालुए माता के चरणों में जो भी आभूषण और नकदी अर्पित करते हैं।
जिसे बाद में भक्तों को प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है। इसके अलावा श्रद्धालुओं को श्रीयंत्रए सिक्केए कौड़ियां और अक्षत कुमकुम लगी कुबेर पोटली भी प्रसाद के रूप में दी जाती है।
मंदिर का इतिहास
महालक्ष्मी मंदिर के इतिहास को लेकर काफी मान्यताएं हैं। ऐसी ही कथा मिलती है रतलाम शहर पर राज्य करने वाले तत्कालीन राजा को महालक्ष्मी माता द्वारा स्वप्न दिया था। इसके बाद से उन्होंने ही यह परंपरा प्रारंभ की थी जो आज तक चल रही है।
इस मंदिर की अनूठी पंरपरा के चलते ही यह देश का शायद पहला एवं एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां पर धन की देवी लक्ष्मी प्रसाद के रूप में गहने और पैसे प्रदान करती हैं।
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